Corpus:Premchand-Mansarovar-1
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|---|---|
| Author/Creator/Speaker(s) | Premchand | 
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| Original language | {{{Olanguage}}} | 
| Date/Place | {{{date/place}}} | 
| Type | book | 
| Annotator | Anil Kumar Singh | 
| Corpus translator | {{{corpustranslator}}} | 
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अभियोग की कार्यवाही समाप्त हो गयी । अब अपराधी के बयान की बारी आयी । इसकी तरफ 
के कोई गवाह न थे । परंतु वकीलों को जज को, और अधीर जनता को पूरा पूरा विश्वास था 
कि अभियुक्त का बयान पुलिस के मायावी महल को क्षणमात्र में छिन्न-भिन्न कर देगा । 
रूपचंद इजलास के सम्मुख आया । इसके मुखारविंद पर आत्म-बल का तेज झलक रहा था और 
नेत्रों में साहस और शान्ति । दर्शक-मंडली उतावली हो कर अदालत के कमरे ,में घुस 
पड़ी रूपचंद इस समय का चाँद था या देवलोक का दूत; सहस्त्रों नयन उसकी ओर लगे थे । 
किंतु हृदय को कितना कौतूहल हुआ जब रूपचंद ने अत्यंत शान्त चित्त से अपना अपराध 
स्वीकार कर लिया ! लोग एक दूसरे का मुँह ताकने लगे ।
अभियुक्त का बयान समाप्त होते ही कोलाहल मच गया । सभी इसकी आलोचना-प्रत्यालोचना 
करने लगे । सबके मुँह पर आश्चर्य था,संदेह था, और निराशा थी । कामिनी की कृतघ्नता 
और निष्ठुरता पर धिक्कार हो रही थी । प्रत्येक मनुष्य शपथ खाने पर तैयार था कि 
रूपचंद सर्वथा निर्दोष है । प्रेम ने उसके मुँह पर ताला लगा दिया है । पर कुछ ऐसे 
भी दूसरे के दुःख में प्रसन्न होनेवाले स्वभाव के लोग थे जो उसके इस साहस पर हँसते
 
और मजाक उड़ाते थे । दो घंटे बीत गये । अदालत में पुनः एक बार शान्ति का राज्य 
हुआ । जज साहब फैसला सुनाने के लिए खड़े हुए । फैसला बहुत संक्षिप्त था । अभियुक्त 
जवान है । शिक्षित है और सभ्य है । अतएव आँखों वाला अंधा है । इसे शिक्षाप्रद दण्ड 
देना आवश्यक है । अपराध स्वीकार करने से उसका दण्ड कम नहीं होता है । अतः मैं उसे 
पाँच वर्ष के सपरिश्रम कारावास की सजा देता हूँ ।
दो हजार मनुष्यों ने हृदय थाम कर फैसला सुना । मालूम होता था कि कलेजे में भाले चुभ 
गये हैं ! सभी का मुँह निराशा-जनक क्रोध से रक्त-वर्ण हो गया था । यह अन्याय है, 
कठोरता और बेरहमी है । परन्तु रूपचंद के मुँह पर शान्ति विराज रही थी ।